तमिलनाडु जमात ने एक आधिकारिक पत्र में दावा किया है कि शरीयत कानून के अनुसार, एक मुस्लिम महिला का हिंदू पुरुष से शादी करना ‘वेश्यावृत्ति‘ के समान है।
इस विचारधारा का समर्थन करना एक प्रकार से मध्यकालीन सोच को पोषित करने वाला है, जो संवैधानिक विचारधारा और सभ्यतात्मक व्यवस्था के विरुद्ध है।
इस प्रकार की सोच एक महिला की स्वतंत्रता, अधिकार एवं सम्मान को क्षति पहुंचाती है। महिलाओं को उनके अपने ही विवाह के निर्णय में सक्रिय भागीदार नहीं माना जाता है। ऐसे विचार न केवल महिलाओं को मात्र संपत्ति के रूप में देखने के लिए प्रेरित करते हैं बल्कि समाज को कई शताब्दियों तक पीछे लेकर जाते हैं।