१६३२ में मुगल सम्राट शाहजहाँ ने सभी नए हिंदू मंदिरों को नष्ट कर देने का आदेश दिया। उसने अपने राज्यपाल को इस कार्य को तुरंत निष्पादित करने के लिए निर्देशित किया। इस पुरे प्रसंग में एक राजपूत युवक ने असाधारण वीरता का परिचय दिया। जब उस युवक को यह बात पता चली तो वह छिप गया और सही समय की प्रतीक्षा करने लगा। सही समय आने पर उसने घेराबंदी कर राज्यपाल के चचेरे भाई और चार अन्य सरदारों को मार डाला। जब उसे ढूंढा गया और उसका पीछा किया गया, तो उसने अपने खंजर से दो और लोगों को मार डाला। अंततः उसे पकड़ लिया गया और फाँसी देकर एक पेड़ से लटका दिया गया।
युवक जानता था कि वह शक्तिशाली मुगल साम्राज्य का सामना अकेले नहीं कर पाएगा। वह जानता था कि उसके पास बचने का कोई मार्ग नहीं है और उसे मार दिया जाएगा। परन्तु उसने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया।
दुर्भाग्यपूर्ण है कि हिंदू सदा से ही अपना इतिहास संजो कर रखना नहीं जानते, इसलिए हमें इस लड़के का नाम तक नहीं पता। गौरतलब है की इस विषय में हमें विदेशी यात्री पीटर मुंडी की दैनंदिनी से पता चलता है।